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विनम्र आग्रह...
मानव ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है, मानव जीवन व परमात्मा में अनुबंध है और वह यह कि, प्रभु ने मनुष्य को इस पृथ्वी रूपी बगीचे की देखभाल करने, इसे सुन्दर व उन्नत बनाने के लिए भेजा है हम विचार करें कि अभी तक हमने कोई उल्लेखनीय कार्य किया या अपने ज्ञान कर्म व व्यवहार से नवीन कीर्तिमान स्थापित किये है |
आज आवश्यकता है हम अपने जीवन में सेवा, सहयोग, स्नेह, समरसता, सहानुभूति व सच्चाई को पर्याप्त स्थान दें एवं यह सब संस्कार व अनुशासन से सिंचित शिक्षा से ही सम्भव है सरस्वती शिशु मंदिर इस दिशा में हमारा सार्थक व सफल प्रयास है |अशोक पारिख
अध्यक्षसन्देश...
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सचिवअपनी बात...
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश में आज भी गौरवशून्य , विवेकरहित व निराशाजनक शिक्षा प्रणाली प्रचलित है | भावी भारत के नौनिहालों को संस्कार व अनुशासन प्रेरित , भारतीय संस्कृति संस्कार , परंपरा व जीवन मूल्यों को अपने में समाहित करती , जन - जन के मन में राष्ट्र सेवा का संकल्प जगाने वाली शिक्षा पद्धति की आवश्यकता है | सरस्वती विद्या मंदिर इन्हीं विचारों , भावनाओं व क्रियाओं का प्रत्यक्ष दर्शन है , जहाँ कल्पनाएँ आकार लेती है , सपने साकार होते है एवं सुनहरे भविष्य के प्रत्यक्ष दर्शन होते है | विद्यालय के प्रत्येक क्रियाकलाप में समाहित है - बालक का सर्वांगीण विकास , अर्थात - मन , बुद्धि , आत्मा का विकास | शिक्षा यज्ञ के इस पावन कार्य में हम सब का समान योगदान आवश्यक है | सरस्वती शिशु मंदिर मंदसौर की प्रगति - पथ का प्रत्येक चरण अपने आप में गौरव गाथा से भरा है | आइये सब पढे सब बढ़े नित नवीन उपलब्धियां प्राप्त करते हुए राष्ट्र सेवा का संकल्प धारण करें |
|| तेजस्विनावधीतमस्तु ||
सुनील शर्मा
एम. ए., बी. एड.
प्रबंधक
Saraswati Vidya Mandir, Sanjeet Marg, Mandsaur